बरसे है फिर ये आसमां से जज़्बात क्या करें,
थे राह में और हो गयी बरसात क्या करें।
मंदिर में हुई सुबह हो के मैखाने की शाम
आते है बस उनके ही ख्यालात क्या करें .
उलझे रहे शबे फुर्कत में जहाँ से ,
बेसबब तन्हाई की ये रात क्या करें .
न उम्मीद कोई ,ना ही आरजू कोई,
ख्वाबों में उनसे मुलाकात क्या करें