शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

पपीहे

पूछते हो अक्सर ना ,
मै क्यूँ
मुझे ही क्यूँ
चाहा तुमने
छोड़ सारी कायनात को ...
सोचती हूं कि
क्या स्वाति नक्षत्र में
बरसी बूँदे  भी
पूछती है पपीहे से
कि मैं क्यो,
मुझी से क्यो
बुझती है
तुम्हारी प्यास ,
मीठे जल स्रोत क्यू
लुभाते नही तुम्हे पपीहे ,

समझ गए ना अब

तुम क्यों
तुम्ही क्यो ,
क्योंकि तुम ही हो
स्वाति नक्षत्र मे
बरसा जल ,
जिसमे अटके
प्राण मेरे ,
तुम हो
तुम्ही हो
जीवन का
सार मेरे ......... े

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें