रविवार, 22 मई 2011

कल रात "रात" खूब रोई मेरे साथ साथ,

Hidden moon by Flamelillyfoxकल रात "रात" खूब रोई मेरे साथ-साथ,
मेरे आंसुओं को पनाह दी मेरे तकिये ने,
रात के आंसू फैले है ओस बन कर,
चाँद के ना होने का अफ़सोस बन कर,
मै तो रोई कुछ अधूरी ख्वाहिशें ले कर,
और रात रोई चाँद से मिलने की तड़प ले कर,
जैसे तुम उलझे रहते हो किन्ही और ही ख्यालों में,
चाँद भी चुप गया है\ बादलों में,
बस मै हूँ और रात है,
...light tree moon...[FP] by Geoff...तड़प और ख्वाहिशों का साथ है,
क्यों अँधेरों की तड़प में उजालों की ख्वाहिश है,
क्यों सवालों की तड़प में जवाबों की  ख्वाहिश है,
"रात" फिर रात भर रोती रही,
मै भी "रात" के आंसुओं में अपनी बेबसी भिगोती रही.............



                                                                                       
                                                                    हेमा अवस्थी



सोमवार, 7 मार्च 2011

ख्वाहिशें

कभी कभी जीवन बड़ा विचित्र रंग दिखाता है.
हम सबके साथ हो कर भी निपट अकेले होते है.
जो है उसकी खुशी नहीं पर जो नहीं है उसका दुःख जरुर होता है.....
ऐसा क्यों होता है......

कभी बीती सी बातें हैं,
कभी रीती सी रातें हैं,
कभी पलकों पर ख्वाब हैं,
तो कभी बोझल सी आँखे हैं,
कभी इंतजार है तुम्हारा,
तो कभी तरसी निगाहे हैं,
हसरत है के एक बार ख्वाहिश
पूरी कर जाऊं मैं,
पर जो पूरी हो जाएँ वो
झूठी ख्वाहिशे हैं,
क्यों उदास कर जाती है
बीते पल बीती बातें,
क्यों मेरी होकर भी
परायी धड़कने है,
कैसे बताऊँ क्यों
घायल है दिल मेरा,
तीर की तरह दिल में पैवस्त
तुम्हारी चितवने हैं.......

प्रतिबिम्ब....


बरसों पुराने अपने लिखने के शौक को आज फिर जीवंत कर रही हूँ,
बीस वर्षों के बाद पुनः लेखनी उठाने की हिम्मत की है,
आप सभी ज्ञानी लोगों से सहयोग और दिशानिर्देश चाहूंगी...............  






जाने क्यों प्रतिबिम्ब डरा रहा है मुझको
बस तेरी जुदाई का मंजर नजर आ रहा है मुझको.
आईने से तो खौफ पहले ही था मुझको
तेरी आँखों में मेरा ही अक्स धुंधला नजर आ रहा है मुझको......