कल रात "रात" खूब रोई मेरे साथ-साथ,
मेरे आंसुओं को पनाह दी मेरे तकिये ने,
रात के आंसू फैले है ओस बन कर,
चाँद के ना होने का अफ़सोस बन कर,
मै तो रोई कुछ अधूरी ख्वाहिशें ले कर,
और रात रोई चाँद से मिलने की तड़प ले कर,
जैसे तुम उलझे रहते हो किन्ही और ही ख्यालों में,
चाँद भी चुप गया है\ बादलों में,
बस मै हूँ और रात है,
तड़प और ख्वाहिशों का साथ है,
क्यों अँधेरों की तड़प में उजालों की ख्वाहिश है,
क्यों सवालों की तड़प में जवाबों की ख्वाहिश है,
"रात" फिर रात भर रोती रही,
मै भी "रात" के आंसुओं में अपनी बेबसी भिगोती रही.............
हेमा अवस्थी
मेरे आंसुओं को पनाह दी मेरे तकिये ने,
रात के आंसू फैले है ओस बन कर,
चाँद के ना होने का अफ़सोस बन कर,
मै तो रोई कुछ अधूरी ख्वाहिशें ले कर,
और रात रोई चाँद से मिलने की तड़प ले कर,
जैसे तुम उलझे रहते हो किन्ही और ही ख्यालों में,
चाँद भी चुप गया है\ बादलों में,
बस मै हूँ और रात है,
तड़प और ख्वाहिशों का साथ है,
क्यों अँधेरों की तड़प में उजालों की ख्वाहिश है,
क्यों सवालों की तड़प में जवाबों की ख्वाहिश है,
"रात" फिर रात भर रोती रही,
मै भी "रात" के आंसुओं में अपनी बेबसी भिगोती रही.............
हेमा अवस्थी