शनिवार, 31 अगस्त 2013

वक्त सबका बदलता है

अहम का बिरवा
फूला फला है खूब ,
अब तो फूल भी आ
गए है नफरतों के ,
और पत्तियां
बिलकुल काली
कलुषित हृदय जैसी .
तन गया है बिरवा
आँधियां तोड़ न दे  ,
थोड़ी लचक सीख लो
वर्ना जड़ से उखड़ने मे
वक्त नहीं लगता है .
सुना है
वक्त सबका बदलता है...

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

जज्बात

बरसे है फिर ये आसमां से जज़्बात क्या करें,
थे राह में और हो गयी बरसात क्या करें।

मंदिर में हुई सुबह हो के मैखाने की शाम
आते है बस उनके ही ख्यालात क्या करें .

उलझे रहे शबे फुर्कत में जहाँ से ,
बेसबब तन्हाई की ये रात क्या करें .

न उम्मीद कोई ,ना ही आरजू कोई,
ख्वाबों में उनसे मुलाकात क्या करें

बस तुम्हारे लिए

"बस तुम्हारे लिए "
काती है
एक चादर दर्द की ,
जिस्म के रेशों से
बने सूत  को
लहू के रंग से
लाल किया है ,
भावनाओं के फूलों की
अश्को से कढ़ाई की है  ,
जड़े हैं कलेजे के टुकड़ो में
प्रेम के मोती .
सजाई है वर्षों के
इंतजार का गोटा
लगा कर
"बस तुम्हारे लिए "

नीलकंठ

मिलने और बिछड़ने
के बीच का एक दिन
कुछ पलों का साथ
और चुरा लाई मैं तुमसे
ही तुम्हारा स्पर्श ,भाव
मुस्कान और एहसास  ,
बदले में दे आई हूं
अपनी तकलीफों का जहर ,
पीना मत वर्ना
जीना मुश्किल हो जाएगा ,
धारण कर लेना कंठ में
शिव की तरह ...

बदलते रंग

तुम रूठते गर
मना लेती,
तुम डाँटते
मै सुन लेती
पर
तुम बदल गए
मै बदल न पाई ,
सिखा देते
ये हुनर भी ,
तो आज मै
भी बदल जाती ,
तुम्हारे न होने का
दर्द धमनियों से शिराओं
तक ना दौड़ता रहता ,
दिल के फूलने
पचकने में यूँ
तकलीफ ना होती ,
सिखा देते जो
मुझे भी रंग बदलना ...

गलतफहमी

सुनी है न तुमने
साँप और नेवले
वाली कहानी ,
गलतफहमियों का
अंत हमेशा
अफसोस पर
आकर खत्म होता है
और अफसोस का
कभी अंत नही होता
लाख सर पटका उसने
नेवला मर चुका था ,
मरे हुए रिश्ते
अफसोस
से जी न उठेंगे ,
जिंदा रहेगा
झूठा अहंकार ,
टूटा स्वाभिमान ,
खोखला वजूद
और न भर सकने
वाला खालीपन ....

आतिशे मोहब्बत

दर्द ये अब हद से गुजर क्य़ूँ नही जाता ,
दिल धड़कता है कमबख्त,रुक क्यूँ नहीं जाता ,

लाशों पर बेअसर होंगे उसके तीर
वो ये बात क्यो कर समझ नही जाता,

मोहब्बतों का सिला मिला है नफरतों से यहाँ,
देख कर हश्र मेरा वो संभल क्यों नही जाता ,

मोम का घर मेरा और ये आतिश ए मोहब्बत ,
पिघल रहा है सब ,क्यू जल नही जाता ...

हाँ लालची हूं मैं ..

हाँ समझ गई हूँ मै
कहा भी और अनकहा भी
कह भी कहाँ पाते हो तुम
कहने से पहले ही सुन लेती हूँ ,
एहसास  की दौलतो का
खजाना समेटे बैठी हूँ,
जो जज्बातो के तोहफे
दिए हैं तुमने ,
और पाना चाहती हूं
हाँ , ये बात मानती हूं
कि लालची हूँ  मैं...

पपीहे

पूछते हो अक्सर ना ,
मै क्यूँ
मुझे ही क्यूँ
चाहा तुमने
छोड़ सारी कायनात को ...
सोचती हूं कि
क्या स्वाति नक्षत्र में
बरसी बूँदे  भी
पूछती है पपीहे से
कि मैं क्यो,
मुझी से क्यो
बुझती है
तुम्हारी प्यास ,
मीठे जल स्रोत क्यू
लुभाते नही तुम्हे पपीहे ,

समझ गए ना अब

तुम क्यों
तुम्ही क्यो ,
क्योंकि तुम ही हो
स्वाति नक्षत्र मे
बरसा जल ,
जिसमे अटके
प्राण मेरे ,
तुम हो
तुम्ही हो
जीवन का
सार मेरे ......... े

प्रेम

दोनों प्रेम में थे
तड़प में थे
गुंथे थे दिल
एक दूजे की
चाहत में .
दुखी थे
मायूस थे
त्रस्त थे
जानते थे
जो एक हुए
तो मौत मिलेगी
फिर भी वो पगला
पाना चाहता
था उसे
कि छोटी ही सही
जी लेना चाहता था
अपनी जिंदगी,
और वो छोड़ देना
चाहती है
उसका साथ
ताकि सलामत रह सके
उस दीवाने की जिन्दगी .

पीड़ा का एक बीज

पीड़ा के एक
बीज सी
याद तुम्हारी ,
जरा सी अश्कों
की नमी पाई जो
फूल कर अंकुरित
हो गया है ,
आओ,
आकर पहचान करो
ये पौधा प्रेम का है
या दर्द का ,
बोया तो प्रेम था ,
पर न मालूम था
दर्द हमेशा प्रेम के
आवरण में छुप कर
आता है
खारे आँसुओं के साथ,
पानी की तरह
भाप बनकर
उड़ जाता है प्रेम
और नमक बन कर
रह जाता है साथ
दर्द हमेशा के लिए ....

तुम

साथ सारे रंजो गम के मुस्कराती हूँ मैं,
तुम तक आते ही पिघल जाती हूं मैं,

जानती हूं ये सफर नहीं आसाँ इतना ,
तुम बहलाते हो तो बहल जाती हूँ मै.

कुम्हलाई सी रहती हूँ जुदा होकर , नजर पड़ते ही तुम्हारी खिल जाती हूं मै ..
मेरे बस मेरे हो तुम ये जानकर भी ,
पाने को तुम्हे मचल जाती हूं मैं ..

जाने कौन सा रूप मेरा बाँध ले तुमको ,
ये सोच रोज नए रूप में ढल जाती हूँ मैं...

बुधवार, 20 मार्च 2013

बस तुमसे है....


क्या उपमेय
क्या उपमान
नहीं जानती मैं
कैसे आता है 
कविता में सौन्दर्य
नहीं जानती मैं .
अलंकारो से 
अपरिचित
मेरे शब्द बस
तुम्हारे प्रेम 
से अलंकृत है...
मेरे शब्दों का सौन्दर्य
बस तुमसे है..
राग ,नेह ,दर्द
बस तुमसे है....

तुम क्यो याद आते हो ....


तुमने तो कभी 
जीव विज्ञान
नहीं पढ़ा और
काले जादू 
से भी तो
डरते थे तुम 
फिर कैसे 
काट ले गए 
तुम मेरे कलेजे 
का एक टुकड़ा .
आज भी दर्द से
कराहता है
मेरा कलेजा
जब भी याद
आते हो तुम,
तुम क्यो
याद आते हो ....

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

रिश्तों की कब्र

आओ चलो मर चुके रिश्तों को दफना दें,
कभी साथ साथ, साथ था,
सौंदर्य मधुर गात था
हांथों में हाथ था
आज हम विलम्ब से ,
विदाई गीत गुनगुना दें,
आओ चलो मर चुके........
भावना भी सुप्त हुईं,
बातें खूब गुप्त हुईं,
चुगलियाँ भी मुफ्त हुईं,
हाँथ अब तुम छोड़ चले ;
किसे हम उलाहना दें,
आओ चलो मर चुके......
नेह डोर टूट गई,
बचपन की यादें भी,
दूर कहीं छूट गईं
तुम तो हमें भूल चुके,
हम भी तुम्हे  बिसरा दें,
आओ चलो मर चुके......