जाना है मुझे यथार्थ की दुनिया से दूर ,
कल्पनाओं के शहर में ...
जो रचा है मैंने जहाँ तुम रहते हो ,
उस कमरे में जिसमे दरवाजा नहीं है,
और मै चुपके से प्रवेश करती हूँ तब
तुम पढते पढते सो चुकते हो .....
किताब को सीने से लगाए और चश्मे को नाक पर चढाए बेखबर मेरे आने से ..
मै समेटते हुए कमरे का बिखरापन ....खुद में संवरती जाती हूँ
सीने से किताब को जुदा करती हूँ ,
जिसमे तुम्हारा दिल धडकता हुआ महसूस होता है मुझे ..
चश्मा हटा के खुश हो लेती हूँ कि अब कोई नहीं मेरे तुम्हारे नजरों के मध्य
और पा लेती हूँ सारे पारलौकिक सुख ...कल्पनाओं के शहर में ...
कुछ भाव जो व्यक्त नहीं कर पाई, कुछ दर्द जो बाँट नहीं पाई,अब लेखनी से वो सारे पल जीना चाहती हूँ,जो इस जीवन की भागदौड में कहीं बहुत पीछे रह गए किन्तु टीसते रहे.......
गुरुवार, 19 अप्रैल 2012
पिपासा
जोड़ दिया क्यों आग का रिश्ता पानी से ,
परस्पर विरोधी ...
एक अविकल पिपासा
आग तो बस चाहती है घृत ..चरम तक पहुचने के लिए .....
परस्पर विरोधी ...
एक अविकल पिपासा
आग तो बस चाहती है घृत ..चरम तक पहुचने के लिए .....
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