मंगलवार, 1 मई 2012

रिश्ता

डरती हूँ पाने से,
क्योकि
खोना भी
जुड जाता है साथ में,
जब तक
मै तुम्हे पाऊँगी नहीं,
कम से कम
खोने का भय
तो नहीं रहेगा.
ऐसा ही
रिश्ता
अच्छा है हमारा,
खोने पाने2 के ,
समीकरण से दूर ...

अनुभूति

जाने कौन हो तुम .
लौकिक या पारलौकिक
समूचे अस्तित्व पर छाये हो तुम
अदृश्य हो ,अचिंतन हो .
.न होते हुए भी बस हो तुम,
जाने सूर्य का तेज हो या
चंद्रमा की शीतलता,
प्रभात का कलरव हो या
रात्रि की नीरवता.
मै अधूरी हूँ तुम बिन ,
तुम अस्तित्व की अनुभूति हो
तुम मेरे अन्धकार की दीप्ति हो .....