वक्त के साथ
मिजाज बदल गए
चार कौड़ी कमाने वालों
के अंदाज बदल गए
कौड़ियो के भाव बिकने वाले
आज कौड़ियों की दौड़
से परे हैं ...
अफसोस कि अब
दो कौड़ी की
भी कीमत न रही
कौड़ियों की
जो कभी इंसानों के
मोल तय करती थी ..
कुछ भाव जो व्यक्त नहीं कर पाई, कुछ दर्द जो बाँट नहीं पाई,अब लेखनी से वो सारे पल जीना चाहती हूँ,जो इस जीवन की भागदौड में कहीं बहुत पीछे रह गए किन्तु टीसते रहे.......
शनिवार, 16 अगस्त 2014
दो कौड़ी का इंसान
अहम..
एक पति का अहम
बड़ा होता है एक पुरूष
के अहम से ,
परनारी की
मदद करता
पुरुष ,
पति बन कर
पथ का रोड़ा
बन जाता है .
नही चाहता
कि पत्नी आगे निकले
उससे
और वो खिसियाया सा सुने
कि प्रतिभाशाली हैं पत्नी आपकी ,
दिखा के पुरुषत्व का अहम घोंट देता है गला प्रतिभा का
और अट्टहास करता है
अपने पुरूष होने पर ,
नारी होने की सजा पाती
नारी कुंठित शोषित
पति के अहम को पालती
पोसती
मार डालती है अपने भीतर की
महात्वाकांक्षी नारी को.
और दुलारते हुए अपनी बेटी
को समझाती है कि जीना है तो
खड़ी हो अपने पैरों पर ,
ठुकरा दो पुरुष का संरक्षण ,
क्योंकि
जिन्दा रहना और जिन्दगी जीना
दो अलग बातें हैं ...
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