शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै ..

सुखों के ढेर पर रोता
कितना उदास वो शख्स ,
सारे सुख खो बैठेे
हैं अपनी चमक ,
नए सुखों की तलाश में
धो माँज कर
सुखा रहा है पुराने सुख
और पाल रहा था
नवीन सुख के
नन्हे भ्रूण अंतस
के धरातल पर ..
पिसासा
यूं ही अंतहीन बन
नवीनता की चाह में 
पहुँची है एक
अनंत श्मशान पर
जहां पुराने सुखों
की चिताएँ जल रही हैं.....

मंगलवार, 2 सितंबर 2014

दुख और पहाड़

दुखों के पहाड़ होते हैं
सुख हमेशा राई की तरह
हम खोदते हैं पहाड़
तरीके ढूढ़ते हैं
रास्ते बनाने के ,
थकते हैं ,हाँफते हैं
और सुख ...
भरमाता है
सुस्ताने भर
की देर के लिए आता है ,
फिर से पहाड़ खोदने का
हौसला देने ,
जिंदगी राई और पहाड़ का
खेल है सारा ....