सुखों के ढेर पर रोता
कितना उदास वो शख्स ,
सारे सुख खो बैठेे
हैं अपनी चमक ,
नए सुखों की तलाश में
धो माँज कर
सुखा रहा है पुराने सुख
और पाल रहा था
नवीन सुख के
नन्हे भ्रूण अंतस
के धरातल पर ..
पिसासा
यूं ही अंतहीन बन
नवीनता की चाह में
पहुँची है एक
अनंत श्मशान पर
जहां पुराने सुखों
की चिताएँ जल रही हैं.....
कुछ भाव जो व्यक्त नहीं कर पाई, कुछ दर्द जो बाँट नहीं पाई,अब लेखनी से वो सारे पल जीना चाहती हूँ,जो इस जीवन की भागदौड में कहीं बहुत पीछे रह गए किन्तु टीसते रहे.......
शुक्रवार, 5 सितंबर 2014
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै ..
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