डरती हूँ पाने से,
क्योकि
खोना भी
जुड जाता है साथ में,
जब तक
मै तुम्हे पाऊँगी नहीं,
कम से कम
खोने का भय
तो नहीं रहेगा.
ऐसा ही
रिश्ता
अच्छा है हमारा,
खोने पाने2 के ,
समीकरण से दूर ...
क्योकि
खोना भी
जुड जाता है साथ में,
जब तक
मै तुम्हे पाऊँगी नहीं,
कम से कम
खोने का भय
तो नहीं रहेगा.
ऐसा ही
रिश्ता
अच्छा है हमारा,
खोने पाने2 के ,
समीकरण से दूर ...
बहुत सही कहा आपने खोने का डर तभी जागता है जब किसी को पा लिया हों |
जवाब देंहटाएंवाकई ऐसा रिश्ता ही अच्छा है जो खोने और पाने के समीकरण से कोसों दूर हों |
www.utkarshita.blogspot.com
आभार कौस्तुभी जी ...
हटाएंवाह ये भी अति सुंदर विवेचन है.......वास्तव में इच्छाओं का कोई अन्त नहीं होता।
जवाब देंहटाएंजब हम पाने खोने "यानि इच्छा करने के और पूरी ना होने पर दुखी होने" से दूर हो जाते है तब जिंदगी से सबसे अच्छा रिश्ता होता है हमारा .........
जवाब देंहटाएंरोचक बात!
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