कुछ भाव जो व्यक्त नहीं कर पाई, कुछ दर्द जो बाँट नहीं पाई,अब लेखनी से वो सारे पल जीना चाहती हूँ,जो इस जीवन की भागदौड में कहीं बहुत पीछे रह गए किन्तु टीसते रहे.......
शनिवार, 16 अगस्त 2014
दो कौड़ी का इंसान
वक्त के साथ
मिजाज बदल गए
चार कौड़ी कमाने वालों
के अंदाज बदल गए
कौड़ियो के भाव बिकने वाले
आज कौड़ियों की दौड़
से परे हैं ...
अफसोस कि अब
दो कौड़ी की
भी कीमत न रही
कौड़ियों की
जो कभी इंसानों के
मोल तय करती थी ..
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