मंगलवार, 1 मई 2012

रिश्ता

डरती हूँ पाने से,
क्योकि
खोना भी
जुड जाता है साथ में,
जब तक
मै तुम्हे पाऊँगी नहीं,
कम से कम
खोने का भय
तो नहीं रहेगा.
ऐसा ही
रिश्ता
अच्छा है हमारा,
खोने पाने2 के ,
समीकरण से दूर ...

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही कहा आपने खोने का डर तभी जागता है जब किसी को पा लिया हों |
    वाकई ऐसा रिश्ता ही अच्छा है जो खोने और पाने के समीकरण से कोसों दूर हों |
    www.utkarshita.blogspot.com

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  2. वाह ये भी अति सुंदर विवेचन है.......वास्तव में इच्छाओं का कोई अन्त नहीं होता।

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  3. जब हम पाने खोने "यानि इच्छा करने के और पूरी ना होने पर दुखी होने" से दूर हो जाते है तब जिंदगी से सबसे अच्छा रिश्ता होता है हमारा .........

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