कल रात "रात" खूब रोई मेरे साथ-साथ,
मेरे आंसुओं को पनाह दी मेरे तकिये ने,
रात के आंसू फैले है ओस बन कर,
चाँद के ना होने का अफ़सोस बन कर,
मै तो रोई कुछ अधूरी ख्वाहिशें ले कर,
और रात रोई चाँद से मिलने की तड़प ले कर,
जैसे तुम उलझे रहते हो किन्ही और ही ख्यालों में,
चाँद भी चुप गया है\ बादलों में,
बस मै हूँ और रात है,
तड़प और ख्वाहिशों का साथ है,
क्यों अँधेरों की तड़प में उजालों की ख्वाहिश है,
क्यों सवालों की तड़प में जवाबों की ख्वाहिश है,
"रात" फिर रात भर रोती रही,
मै भी "रात" के आंसुओं में अपनी बेबसी भिगोती रही.............
हेमा अवस्थी
मेरे आंसुओं को पनाह दी मेरे तकिये ने,
रात के आंसू फैले है ओस बन कर,
चाँद के ना होने का अफ़सोस बन कर,
मै तो रोई कुछ अधूरी ख्वाहिशें ले कर,
और रात रोई चाँद से मिलने की तड़प ले कर,
जैसे तुम उलझे रहते हो किन्ही और ही ख्यालों में,
चाँद भी चुप गया है\ बादलों में,
बस मै हूँ और रात है,
तड़प और ख्वाहिशों का साथ है,
क्यों अँधेरों की तड़प में उजालों की ख्वाहिश है,
क्यों सवालों की तड़प में जवाबों की ख्वाहिश है,
"रात" फिर रात भर रोती रही,
मै भी "रात" के आंसुओं में अपनी बेबसी भिगोती रही.............
हेमा अवस्थी
वाह हेमा जी, अगर आप बता सकें तो अवश्य बताएं, आपकी रचना क्या सिर्फ एक कथा है, या आपके अंतर्मन की व्यथा है??
जवाब देंहटाएंभावनाओं को शब्दों में व्यक्त करना कोई आपसे सीखे..बहुत बढ़िया..
राजेंद्र जी ,यह कथा भी है और व्यथा भी ..जिस नज़रिए से आप देखना चाहे ...
हटाएंaapne rajendra ji ke sawal ka javab nahi diya....
जवाब देंहटाएंi am also waiting for that.
शिवांगी जी ,मैंने राजेन्द्र जी को जवाब दे दिया है ..
हटाएंबहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय , धन्यवाद
हटाएंबेटा शिवांगी जो जवाब मिला है वो ना मिलने के जैसा ही है,
जवाब देंहटाएंमै और तुम दोनो ही लोग जवाब की प्रतिक्षा मे हैं......हेमा जी को चाहिये कि, वो कृपया स्पश्ट उत्तर दें।
जवाब देंहटाएंस्पष्ट जवाब देना अभी सीखना पड़ेगा ..........