रविवार, 22 मई 2011

कल रात "रात" खूब रोई मेरे साथ साथ,

Hidden moon by Flamelillyfoxकल रात "रात" खूब रोई मेरे साथ-साथ,
मेरे आंसुओं को पनाह दी मेरे तकिये ने,
रात के आंसू फैले है ओस बन कर,
चाँद के ना होने का अफ़सोस बन कर,
मै तो रोई कुछ अधूरी ख्वाहिशें ले कर,
और रात रोई चाँद से मिलने की तड़प ले कर,
जैसे तुम उलझे रहते हो किन्ही और ही ख्यालों में,
चाँद भी चुप गया है\ बादलों में,
बस मै हूँ और रात है,
...light tree moon...[FP] by Geoff...तड़प और ख्वाहिशों का साथ है,
क्यों अँधेरों की तड़प में उजालों की ख्वाहिश है,
क्यों सवालों की तड़प में जवाबों की  ख्वाहिश है,
"रात" फिर रात भर रोती रही,
मै भी "रात" के आंसुओं में अपनी बेबसी भिगोती रही.............



                                                                                       
                                                                    हेमा अवस्थी



8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह हेमा जी, अगर आप बता सकें तो अवश्य बताएं, आपकी रचना क्या सिर्फ एक कथा है, या आपके अंतर्मन की व्यथा है??
    भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करना कोई आपसे सीखे..बहुत बढ़िया..

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    1. राजेंद्र जी ,यह कथा भी है और व्यथा भी ..जिस नज़रिए से आप देखना चाहे ...

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  2. aapne rajendra ji ke sawal ka javab nahi diya....
    i am also waiting for that.

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    1. शिवांगी जी ,मैंने राजेन्द्र जी को जवाब दे दिया है ..

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  3. बेटा शिवांगी जो जवाब मिला है वो ना मिलने के जैसा ही है,
    मै और तुम दोनो ही लोग जवाब की प्रतिक्षा मे हैं......हेमा जी को चाहिये कि, वो कृपया स्पश्ट उत्तर दें।

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  4. स्पष्ट जवाब देना अभी सीखना पड़ेगा ..........

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