कुछ भाव जो व्यक्त नहीं कर पाई, कुछ दर्द जो बाँट नहीं पाई,अब लेखनी से वो सारे पल जीना चाहती हूँ,जो इस जीवन की भागदौड में कहीं बहुत पीछे रह गए किन्तु टीसते रहे.......
सोमवार, 7 मार्च 2011
प्रतिबिम्ब....
बरसों पुराने अपने लिखने के शौक को आज फिर जीवंत कर रही हूँ,
बीस वर्षों के बाद पुनः लेखनी उठाने की हिम्मत की है,
आप सभी ज्ञानी लोगों से सहयोग और दिशानिर्देश चाहूंगी...............
जाने क्यों प्रतिबिम्ब डरा रहा है मुझको
बस तेरी जुदाई का मंजर नजर आ रहा है मुझको.
आईने से तो खौफ पहले ही था मुझको
तेरी आँखों में मेरा ही अक्स धुंधला नजर आ रहा है मुझको......
जो उद्गार व्यक्त किये आपने अपनी प्रथम रचना के माध्यम से....वो निश्चित ही जीवन के कठोर अनुभवों का ताना बाना सा लगता है। अच्छा लिखा है।
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