कुछ भाव जो व्यक्त नहीं कर पाई, कुछ दर्द जो बाँट नहीं पाई,अब लेखनी से वो सारे पल जीना चाहती हूँ,जो इस जीवन की भागदौड में कहीं बहुत पीछे रह गए किन्तु टीसते रहे.......
बुधवार, 9 दिसंबर 2015
बोनसाई
वो फैला रही थी शाखाएं
हम धार धर रहे थे ,
वो नाप रही थी ऊँचाई
हम कोपलें कतर रहे थे ,
वो उन्मुक्त हो कर फैलाना
चाह रही थी छाँव चारो ओर
और हम उसे काट छाँट और
मोड़ कर बोनसाई बना रहे थे ...
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